शायरी/शब्दरचना पराग पिंगळे यवतमाळ.

##माहौल##
ये किस माहौल मे,
हम जी रहे है ?
गधे हस रहे है ,
और शेर रो रहे है ।
सल्तनत ये कैसी,
जो सितम ढा रही है,
फरीबियोको इंसानियत,
अब याद आ रही है,
अरे कैसा है मंजर,
और कैसा है ये जजबा?
जो कत्ल कर रहे है,
वो मातम रहे है ।
जुल्म की हालात मे
बेबस जी रहे है,
गधे हस रहे है
और शेर रो रहे है ।
इस हालात मे तुम्हे
होश मजूर नही,
सितमगर अगर तुम्हें
पीर मंजूर नही,
लाख चाहो छुपाना
तुम्हारे नापाक रिश्ते,
सच्चे आशियाने में हमे
फरेब मंजूर नही,
पाक रिश्ते निभाना तो
सभी चाह रहे है,
पर,गधे हस रहे है
और शेर रो रहे है ।
ये अमन ये भाईचारा,
क्यो खो रहा है ?
दंगो में क्या खोया,
हिसाब हो रहा है
खोकली है इंसानियतकी
नींव इतनी कच्ची?
जोडों के निर्माण का,
अब हिसाब हो रहा है,
आरोपी दंगो के
खुद फैसले कर रहे है,
पर गधे हस रहे है
और शेर रो रहे है ।
सियासत की है,
ये कौनसी मजबूरी ?
ईमान से न जाने क्यों
बना ली उन्होंने दूरी?
कमबख्त क्या चीज
है ये खुदगर्जी ?
कहा गयी है हमारी
वो चट्टानसी खुद्दारी?
हमारे ईमान…..
सरेआम बिक रहे है
और,गधे हस रहे है,
शेर रो रहे है ।
आझादी कि कहानी
हमने खुद याद कियी है,
जूल्म के ठेकेदारों से
मैंने खुद बात कियी है,
मत भूलो आझादी के बलिदानो को तुम वतन परास्तो,
भगत सिंग ने भी इसी
मिट्टी के लिये कुर्बानी दियी है,
चंद गद्दार सियासतकी
बाजार में दिख रहे है,
गधे हस रहे है,
और शेर रो रहे है ।
ये किस माहौल मे,
हम जी रहे है ?
गधे हस रहे है ,
और शेर रो रहे है